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151+ वक़्त शायरी | Waqt Shayari in Hindi

वक़्त शायरी (Waqt Shayari in Hindi)

Waqt Shayari
 in Hindi

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है


सुब्ह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है


तुमसे मिल कर इतनी तो उम्मीद हुई है
इस दुनिया में वक़्त बिताया जा सकता है


हर रोता हुआ लम्हा मुस्कुराएगा,
तु सब्रा रख अपना भी वक्त आयेगा।।


वक़्त अच्छा भी आएगा ‘नासिर’
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी


उस वक़्त मुझे चौंका देना,
जब रँग में महफ़िल आ जाए।।


उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा


ये न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो


Betwinner

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है


जनाब सब कुछ तो था उनके पास,
काश कुछ वक्त भी होता हमारे लिये उनके पास।


वक्त ने थोड़ा सा साथ नहीं दिया तो लोगो ने,
काबिलियत पर शक करना शुरू कर दिया।।


वक्त एक ऐसा गुरु है जो इंसान को
जिंदगी की सही कीमत बताता है.!!


कौन डूबेगा किसे पार उतरना है ‘ज़फ़र’
फ़ैसला वक़्त के दरिया में उतर कर होगा


वक्त की धुंध में छुप जाते हैं ताल्लुक,
बहुत दिनों तक किसी की आँख से ओझल ना रहिये।।


प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है


वक़्त बर्बाद करने वालों को,
वक़्त बर्बाद कर के छोड़ेगा।।


वक्त तू कितना भी सता ले हमे लेकिन याद रख,
किसी मोड़ पर तुझे भी बदलने पर मजबूर कर देंगे…


ये ना-गुज़ीर है उम्मीद की नुमू के लिए
गुज़रता वक़्त कहीं थम गया तो क्या होगा?


और क्या चाहती है गर्दिश-ए-अय्याम कि हम
अपना घर भूल गए उन की गली भूल गए


इक साल गया इक साल नया है आने को
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को


ये बदलता वक्त और बदलते लोग
जिंदगी में बहुत कुछ सिखा देते है.!!


उजड़े हुए लोगों से गुरेज़ाँ न हुआ कर
हालात की क़ब्रों के ये कतबे भी पढ़ा कर


अभी तो थोड़ा वक्त है उनको आजमाने दो,
रो रोकर पुकारेंगे हमे हमारा वक्त आने दो।।


जनाब मालूम नहीं था की ऐसा भी एक वक़्त आएगा,
इन बेवक़्त मौसमों की तरह तू भी क्षणभर में यु बदल जायेगा।


तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है


तुम ने वो वक्त कहां देखा जो गुजरता ही नहीं,
दर्द की रात किसे कहते हैं तुम क्या जानो।।


वक़्त का पत्थर भारी होता जाता है
हम मिट्टी की सूरत देते जाते हैं


राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
हम को चलना है मगर वक़्त की रफ़्तार के साथ


अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है


समय कभी नही रुकता है लेकिन
जाते हुए हमे बड़ी सीख दे जाता है..!


गुज़रते वक़्त ने क्या क्या न चारा-साज़ी की
वगरना ज़ख़्म जो उस ने दिया था कारी था


वक़्त बदलने से उतनी तकलीफ नहीं होती,
जितनी किसी अपने के बदल जाने से होती है.


सीख जाओ वक्त पर किसी की चाहत की कदर करना,
कहीं कोई थक ना जाये तुम्हें एहसास दिलाते दिलाते।।


ज़रा सा वक़्त जो बदला तो हम पे हँसने लगे
हमारे कांधे पे सर रख के रोने वाले लोग


शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम
दिन गुज़रते हैं तिरे ख़्वाब के आसार में गुम


कुछ इस तरह से सौदा किया मुझसे मेरे वक्त ने,
तजुर्बे देकर वो मुझसे मेरी नादानियां ले गया।।


ऐ बुरे वक्त, जरा अदब से पेश आ,
वक्त नही लगता वक्त बदलने में।


मेरे जिस्म से वक़्त ने कपड़े नोच लिए
मंज़र मंज़र ख़ुद मेरी पोशाक हुआ


जैसे दो मुल्कों को इक सरहद अलग करती हुई,
वक़्त ने ख़त ऐसा खींचा मेरे उस के दरमियाँ।।


जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते


वक्त को बुरा मत कहिए जनाब
यही तो सबके असलियत दिखाता है..!


हम वक्त को भी रोक लेंगे,
तुम बेवक्त मिलना तो शुरू करो।।


वक्त चाहत नही होती तो तेरे करजज़ार होते,
एक पल के लिए भी हम तलाबदार न होते।।


वक़्त अब दस्तरस में है ‘अख़्तर’
अब तो मैं जिस जहान तक हो आऊँ


सब आसान हुआ जाता है
मुश्किल वक़्त तो अब आया है


वक़्त करता है परवरिश बरसों
हादिसा एक दम नहीं होता


हर वक्त मेरा वहम नहीं जाता,
एक बार और कह दो की तुम मेरे हो।।


इक साल गया इक साल नया है आने को
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को


सुनो ये जो वक़्त तुम्हारे बिना गुज़रता है ना,
बस अपनी ज़िंदगी के इसी हिस्से से बहुत नफ़रत है मुझे।


शौक से आए अगर बुरा वक्त आता है,
हम को हर हाल में जीने का हुनर आता है।।


सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता


वक्त के झांसे में कभी मत आना
ये मुझसे भी यही कहता था मैं तेरा हूं..!


वक्त बदलते देर नहीं लगती,
ये सब कुछ भुला भी देता है सिखा भी देता है।।


कुछ वक़्त ख़ामोश होकर देखा
लोग सच में भूल जाते हैं


रोके से कहीं हादसा-ए-वक़्त रुका है
शोलों से बचा शहर तो शबनम से जला है


वक़्त ने किस आग में इतना जलाया है मुझे
जिस क़दर रौशन था मैं उस से सिवा रौशन हुआ


वक़्त-ए-रुख़्सत आब-दीदा आप क्यूँ हैं
जिस्म से तो जाँ हमारी जा रही है


किसी के बुरे वक्त पर हंसने की गलती मत करना,
ये वक्त है जनाब चेहरे याद रखता है।।


ज़िन्दगी की जरूरतें समझिए वक्त कम है फरमाइश लम्बी हैं,
झूठ-सच, जीत-हार की बातें छोड़िये दास्तान बहुत लम्बी है।।


तुम बड़े अच्छे वक़्त पर आए
आज इक ज़ख़्म की ज़रूरत थी


आप के दुश्मन रहें वक़्त-ए-ख़लिश सर्फ़-ए-तपिश,
आप क्यों ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार-ए-हिजराँ कीजिये।।


इश्क़ का लम्हा महज़ एक वक़्त का फ़साना है,
और वक़्त की तो फ़ितरत ही बदल जाना है।


कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद


सैल-ए-ज़माँ में डूब गए मशहूर-ए-ज़माना लोग
वक़्त के मुंसिफ़ ने कब रक्खा क़ाएम उन का नाम


तुम चलो इस के साथ या न चलो
पाँव रुकते नहीं ज़माने के


ये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा
वक़्त के साथ ज़माना भी बदल जाएगा


उस वक्त इंतजार का आलम ना पूछिए,
जब कोई बार बार कहे आ रहा हूं में।।


ए वक्त जरा संभल के चल कुछ बुरे
लोगो का कहना है कि तू सबसे बुरा है..!


वक़्त के पास हैं कुछ तस्वीरें
कोई डूबा है कि उभरा देखो


चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके,
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया।।


कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे,
मगर वो ज़ख़्म कि जिस का निशाँ नहीं जाता ।।


बेकार गया बन में सोना मिरा सदियों का
इस शहर में तो अब तक सिक्का भी नहीं बदला


वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए
वर्ना मैं आता मशवरे के लिए


उसे शिकायत है कि मुझे बदल दिया वक्त ने,
कभी खुद से भी सवाल करना कि क्या तुम वही हो?


किस हक से मांगू अपने हिस्से का वक्त आपसे,
क्योंकि ना आप मेरे ओर ना ही वक्त मेरा।।


कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं
जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के ला


दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हें
था कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का


ये वक़्त ही था जिसने मुझे बदनाम किया है,
वरना गिने जाते थे हम भी कभी उन शरीफों में।


जो तेरा है वो तुझ तक जरूर आएगा
खुदा तुझ तक उसको खुद पहुंचाएगा..!


हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते


सुब्ह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है


वक्त नहीं लगता दिल को दिल तक आने में,
पर सादिया लग जाती है एक रिश्ता भूलने में।।


खूब करता है, वो मेरे ज़ख्म का इलाज,
कुरेद कर देख लेता है और कहता है वक्त लगेगा।।


दिल में और दुनिया में अब नहीं मिलेंगे हम
वक़्त के हमेशा में अब नहीं मिलेंगे हम


अलग सियासत-ए-दरबाँ से दिल में है इक बात
ये वक़्त मेरी रसाई का वक़्त है कि नहीं


ज़ुल्फ़ थी जो बिखर गई रुख़ था कि जो निखर गया
हाए वो शाम अब कहाँ हाए वो अब सहर कहाँ


हर वक्त दिल को जो सताए ऐसी कमी है तू,
में भी ना जानू की इतनी क्यू लाज़मी है तू।।


या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है


मैं तो वक्त से हार कर सर झुकाएँ खड़ा था,
सामने खड़े कुछ लोग ख़ुद को बादशाह समझने लगे।।


कल मिला वक़्त तो ज़ुल्फ़ें तेरी सुलझा लूंगा,
आज उलझा हूँ ज़रा वक़्त के सुलझाने में।।


महंगी घड़ी खरीद रहे हो तो बता दुं जनाब,
घड़ी वक्त बताती है बदलती नहीं।।


अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़
दम घुट रहा है वक़्त की रफ़्तार देख कर


उसकी कदर करने में जरा भी देर मत करना,
जो इस दौर में भी आपको वक्त देता हो।।


तुझे वक्त के साथ चलना पड़ेगा
जो बदलेगा रूट तो बदलना पड़ेगा..!


कुछ इशारा जो किया हम ने मुलाक़ात के वक़्त
टाल कर कहने लगे दिन है अभी रात के वक़्त


वक़्त बर्बाद करने वालों को
वक़्त बर्बाद कर के छोड़ेगा


सुना है कुछ लोगो का वक़्त बुरा सा चल रहा है,
और वो हैं कि नफरत हम ही से कर रहे हैं।


अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे


रख दिया वक़्त ने आईना बना कर मुझ को
रू-ब-रू होते हुए भी मैं फ़रामोश रहा


कोशिश हजार कि इसे रोक लूं मगर
ठहरी हुई घड़ी मे भी ठहरा नही है वक्त !


वक्त ने फंसाया है लेकिन में परेशान नहीं हूं,
हालात से हार जाऊ में वो इंसान नहीं हूं।।


जब दिल पे छा रही हों घटाएँ मलाल की,
उस वक़्त अपने दिल की तरफ़ मुस्कुरा के देख।।


प्यार अगर सच्चा हो तो कभी नहीं बदलता,
ना वक्त के साथ ना हालात के साथ।।


मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता है
कि आँसू ख़ुश्क हो जाते हैं तुग़्यानी नहीं जाती


खफा हम किसी से नहीं जनाब बस जरा वक़्त की कमी है,
आसमान में उड़ने का एक ख्वाब है और पैरों तले जमीं है।


“गीता” में लिखा है निराश मत होना,
कमजोर तेरा वक्त है तू नहीं।।


मैं जिसके साथ होकर वक्त को भूल जाता था,
वो वक्त के साथ मुझे भूल गयी है।


पैसा कमाने के लिए इतना वक़्त खर्च ना करो की,
पैसा खर्च करने के लिए ज़िन्दगी में वक़्त ही न मिले।।


वक़्त अच्छा भी आएगा ‘नासिर’
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी


बादशाह तो वक़्त होता है इंसान
तो यूं ही गुरुर करता है !


कौन कहता है कि वक्त बहुत तेज है,
कभी किसी का इंतजार तो करके देखो।।


सुकूँ से रात बिताते थे मौज करते थे
जब उसके ख़्वाब न आते थे मौज करते थे


वक़्त का खास होना ज़रुरी नहीं,
खास लोगों के लिये वक़्त होना ज़रुरी हैं।।


‘जमाल’ अब तो यही रह गया पता उस का
भली सी शक्ल थी अच्छा सा नाम था उस का


शायद वक्त का मजाक था या बदनसीबी,
तेरी प्यार की दो बातो को में मोहब्बत समझ बैठा।।


जख्मों ने मुझ में दरवाजे खोले हैं
मैंने वक्त से पहले टांके खोलें हैं


वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं


ना उसने मुड़ कर देखा ना हमने पलट कर आवाज दी,
अजीब सा वक्त था जिसने दोनो को पत्थर बना दिया।।


वक्त नहीं है किसी के पास,
जब तक न हो कोई मतलब खास।।


समय बदला और बदली कहानी हैं
संग मेरे हसीं पलों की यादें पुरानी हैं !


जिन्हें वाकई बात करना आता है
वह अक्सर खामोश रहते हैं !


वक़्त जब करवटें बदलता है
फ़ित्ना-ए-हश्र साथ चलता है


चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया


कितना भी पकड़ो फिसलता जरूर है,
यह वक्त है साहब बदलता जरूर है।।


लोगों पर भरोसा करते वक्त ज़रा सावधान रहिये,
क्युकि फिटकरी और मिश्री एक जैसे ही नजर आते है।।


शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है


वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में ‘मुनीर’
आज कल होता गया और दिन हवा होते गए


कैसे कहूँ कि इस दिल के लिए कितने खास हो तुम,
फासले तो कदमों के हैं पर, हर वक्त दिल के पास हो तुम।।


जरूरत से ज्यादा इज्जत ओर समय देने से,
लोग आपको फालतू समझने लगते है।।


रिश्ते उन्ही से बनाओ जो
निभाने की हिम्मत रखते हो !


वक़्त रहता नही कहीं टिककर
इसकी आदत भी आदमी सी है


वो भी आख़िर तिरी तारीफ़ में ही ख़र्च हुआ
मैं ने जो वक़्त निकाला था शिकायत के लिए


हाथ छूटे भी तो रिश्ता नहीं तोड़ा करते,
वक्त को शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते।।


वक़्त की वहशी हवा क्या क्या उड़ा कर ले गई
ये भी क्या कम है कि कुछ उस की कमी मौजूद है


तो क्या हुआ गर महंगे खिलौने के लिए जेब में पैसे नहीं,
मैं वक्त देता हूँ मेरे बच्चों को जो अमीरों को मयस्सर नहीं।।


आग हो तो जलने में देर कितनी लगती है
बर्फ के पिघलने में देर कितनी लगती है


केवल इंसान ही गलत नहीं होते,
कभी कभी वक्त भी गलत हो सकता है।।


वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया


समेट लो इन नाजुक पलो को
ना जाने यह नहीं कल हो ना हो !


कितना भी समेट लो हाथों से फिसलता ज़रूर है,
ये वक्त है दोस्तों बदलता ज़रूर है।।


वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले


वो वक्त सी थी जो गुजर गई,
और मैं यादों सा था जो ठहर गया।


हज़ारों साल सफ़र कर के फिर वहीं पहुँचे
बहुत ज़माना हुआ था हमें ज़मीं से चले


कभी वक्त मिला तो जुल्फें तेरी सुलझा दूंगा,
आज उलझा हूं जरा वक्त को सुलझाने में।।


लम्हा दर लम्हा तेरी राह तका करती है
एक खिड़की तेरी आमद की दुआ करती है


किस तरह उम्र को जाते देखूँ
वक़्त को आँखों से ओझल कर दे


ज़मीन पर मेरा नाम वो लिखते और मिटाते हैं,
वक्त उनका तो गुजर जाता है, मिट्टी में हम मिल जाते हैं।


ना ही वक्त हमारा ही सका ओर ना ही हम वक्त के,
फिर उनसे क्या ही उम्मीद की जाए।।


वक्त इशारा देता रहा और हम इत्तेफाक समझते रहे,
बस यूँही धोके खाते रहे, और इस्तेमाल होते रहे।।


उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें
वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया


उम्र का एक और साल गया
वक़्त फिर हम पे ख़ाक डाल गया


इंसान का वक्त खराब हो सकता है,
लेकिन किस्मत कभी नहीं।।


सब एक नज़र फेंक के बढ़ जाते हैं आगे,
मैं वक़्त के शो-केस में चुप-चाप खड़ा हूँ।।


मुझे तराश के रख लो कि आने वाला वक़्त
ख़ज़फ़ दिखा के गुहर की मिसाल पूछेगा


शाम का वक्त हो और ‘शराब’ ना हो,
इंसान का वक्त इतना भी ‘खराब’ ना हो।।


वक्त रहते सुधार जाओ वरना बेवक्त,
वक्त के हालातो में सुधार दिए जाओगे।।


जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते


न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम
रहा ये वहम कि हम हैं सो वो भी क्या मालूम


आओ कभी वक्त मिले तो,
साथ बैठकर कुछ वक्त गुजारते है।।


वक़्त से पहले हादसों से लड़ा हूँ
मैं अपनी उम्र से कई साल बड़ा हूँ


जनाब तौबा करना अपना वक़्त किसी का करने से,
खुद की ज़िन्दगी का हिसाब नही कराया जाता औरों से।


वक़्त मुश्किल कट रहा है, और तो सब ठीक है
दिल ज़रा नाशाद सा है, और तो सब ठीक है


जैसे दो मुल्कों को इक सरहद अलग करती हुई
वक़्त ने ख़त ऐसा खींचा मेरे उस के दरमियाँ


वक्त की कैद में ज़िन्दगी है मगर,
चंद घड़ियां वहीं है जो आज़ाद है।।


जब हम रिश्तों के लिए वक़्त नहीं निकाल पाते
तब वक़्त हमारे बीच से रिश्ते को निकाल देता है


समय बदलने से उतनी तकलीफ नहीं होती
जितनी किसी अपने के बदल जाने से होती है !


वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है


आँखो में यु समन्दर लिए किनारे कि तलाश में हूँ,
इस वक्त को वक्त देकर वक्त पाने कि आस में हूँ।


वक़्त फ़ुर्सत दे तो मिल बैठें कहीं बाहम दो दम
एक मुद्दत से दिलों में हसरत-ए-तरफ़ैन है


कहने को तो सब अपने है,
पर मुझे अपना कोन मानता है ये वक्त बताता है।।


ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना


‘अख़्तर’ गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है


कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बा’द किसी की तरफ़ नहीं देखा


रोके से कहीं हादसा-ए-वक़्त रुका है,
शोलों से बचा शहर तो शबनम से जला है।।


जिसके भाग्य में जिस समय जितना मिलना होता है,
उस उस समय वह मिल ही जाता है।।


उलझ गया था तुम्हारे दुपट्टे का कोना मेरी घड़ी से,
वक्त तब से जो रुका है तो अब तक रुका ही पड़ा है।।


बच्चों के साथ आज उसे देखा तो दुख हुआ
उन में से कोई एक भी माँ पर नहीं गया


आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए


वक़्त की सई-ए-मुसलसल कारगर होती गई
ज़िंदगी लहज़ा-ब-लहज़ा मुख़्तसर होती गई


वक़्त बहुत कुछ, छीन लेता है,
खैर मेरी तो सिर्फ़ मुस्कुराहट थी।


इंतजार नहीं करता ये समय किसी का
और किसी के लिए रुकता भी नहीं !


ये “वक्त वक्त की बातें” बहुत कुछ बताती है,
ये “वक्त वक्त की बातें” बहुत बातें करती है।।


वक़्त जब करवटें बदलता है,
फ़ित्ना-ए-हश्र साथ चलता है।।


उस वक़्त का हिसाब क्या दूँ
जो तेरे बग़ैर कट गया है


बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं


किए कराए का सारा हिसाब दूँगा मैं
सवाल जो भी करोगे जवाब दूँगा मैं


बगैर चश्मे के जो देख भी न पाता है
वो बेवक़ूफ़ मुझे देखना सिखाता है


वक़्त लगता है खुद को बनाने मे,
इसलिए वक़्त बर्बाद मत करो किसी को मानाने में।


वक्त ही तो आज खराब है,
कल बेहतर नहीं बेहतरीन होगा।।


कहीं ये अपनी मोहब्बत की इंतिहा तो नहीं
बहुत दिनों से तिरी याद भी नहीं आई


खामोशी ही बनी रही पूरी उम्र हमारे दरमियान
बस वक्त के सितम और हसीन होते गए !


दिल को उदास करने जब तन्हाई आती है
समय गुजर जाता है बस यादें साथ निभाती है !


कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे
मगर वो ज़ख़्म कि जिस का निशाँ नहीं जाता


ये जो इतना गुमान है तुझे “वक्त” ही तो है,
आज तेरा है कल मेरा होगा।।


जिनसे उठता नहीं कली का बोझ
उनके कन्धों पे ज़िन्दगी का बोझ


बुरा वक्त तो सबका आता हैं,
कोई बिखर जाता हैं कोई निखर जाता हैं…


वक़्त अजीब चीज़ है वक़्त के साथ ढल गए,
तुम भी बहुत करीब थे अब बहुत बदल गए।


सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर


लगा कर हमे आदत अपनी इस मोहब्बत की अब,
कहते हो दूर रहो हमसे मेरे पास वक़्त नही अब।


वक़्त के साथ वक़्त से ही लड़ रहें है,
वक़्त के ही खेल में वक़्त से आगे निकल रहें है।


जिसको कहना है कहने दो आपका क्या जाता है,
वक्त वक्त की बात है और वक्त सबका आता है।।


हो रही है साज़िश मेरी बर्बादी की
घर में बात चल रही है मेरी शादी की


वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन
समय की नाव में मेरा सवाल डूब गया


हम तो सुनते थे कि मिल जाते हैं बिछड़े हुए लोग
तू जो बिछड़ा है तो क्या वक़्त ने गर्दिश नहीं की


वक्त दिखाई नहीं देता है,
पर बहुत कुछ दिखा जाता है।।


धीरज का दामन पकड़े पढ़ लेंगे खामोशियों को,
अभी उलझनों में उलझे हैं वक्त लगेगा गिर कर संभलने में।।


आज का इंसान सच्ची बाते दिल पर नही
लेता और झूठी बाते दिमाग में ले लेता है !


उसे कहना बिछड़ने से मुहब्बत तो नहीं मरती
बिछड़ जाना मुहब्बत की सदाकत की अलामत है


वक्त को अपना बनाने में,
वक्त लगता है।।


वक़्त करता है परवरिश बरसों
हादिसा एक दम नहीं होता


तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना


वक़्त अच्छा ज़रूर आता है
पर कभी वक़्त पर नहीं आता


तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए


रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए
इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है


वक्त ओर इंसान,
कब बदल जाए पता ही नहीं चलता।।


वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां,
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में हैं।।


समय से लड़कर जो अपना नसीब बदल दे
इंसान वही जो अपनी तक़दीर बदल दे !


जिन किताबों पे सलीक़े से जमी वक़्त की गर्द,
उन किताबों ही में यादों के ख़ज़ाने निकले।।


मै बातो में वक्त जाया नहीं करता,
खामोशी मेरी सब बयां कर देती है।।


ना करो हिमाकत किसी के वक़्त पर हसने की
ये वक़्त है जनाब चेहरे याद रखता है


जो बीत गया सो बीत गया
पीछे मुड़ मुड़ कर मत देखो


कभी वक्त निकाल के हमसे बातें करके देखना,
हम भी बहुत जल्दी बातों मे आ जाते है।।


दुनिया में और वक़्त बिताने का मन नहीं
लेकिन ख़ुदा के पास भी जाने का मन नहीं


वक्त ने सबके हिस्से मे दुख बांटे है
इसलिए घड़ी मे फूल नही कांटे है !


कभी कभी वक्त के साथ,
ठीक नहीं सब खत्म हो जाता है।।


गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने
घड़ी पर रख दिया था हाथ मैं ने


सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं,
देखना हैं जोर कितन बाजू-ए-कातिल में हैं,


वक़्त को बस गुज़ार लेना ही
दोस्तो कोई ज़िंदगानी है


वक्त से पहले कई बार लड़ा हूं में,
अपनी उम्र से कई साल बड़ा हूं में।।


आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा


वो खूबसूरत बचपन सबको याद आता है,
जो वक्त के साथ यु बीत जाता है।


वक्त तो होता ही है बदलने
के लिए ठहरते तो बस लम्हे है !


किताबें तो यूं ही बदनाम है,
वक्त ओर लोग ही बहुत कुछ सीखते है ज़िन्दगी में।।


ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
इसे देखें कि इस में डूब जाएँ


दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले


वक्त गूंगा नहीं मोंन है,
वक्त आने पर बता देंगे किसका कोन है।।


इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया


फुर्सत निकालकर आओ कभी मेरी महफ़िल में,
लौटते वक्त दिल नहीं पाओगे अपने सीने में।।


आने में थोड़ा वक्त जरूर लगता है,
ओर वक्त सबका आता है।।


मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी आता है इंसाँ पर
सितारों की चमक से चोट लगती है रग-ए-जाँ पर


वो वक्त सी थी जो गुजर गई
और मै यादो सा था जो ठहर गया !


और क्या चाहती है गर्दिश-ए-अय्याम कि हम
अपना घर भूल गए उन की गली भूल गए


हर वक़्त दिल को जो सताए ऐसी कमी है तू,
मैं भी ना जानू की इतनी क्यूँ लाज़मी है तू।।


वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं


वक़्त की मौज हमें पार लगाती कैसे
हम ने ही जिस्म से बाँधे हुए पत्थर थे बहुत


हर बार वक्त को दोष देना ठीक नहीं हैं,
कभी कभी ये लोग ही बुरे होते हैं।


वक़्त पूजेगा हमें वक़्त हमें ढूँडेगा
और तुम वक़्त के हम-राह चलोगे यारो


हर चेहरे से खींच लेता है तबस्सुम ग़ालिब,
ये वक्त है हर शख्स का हिसाब लेता है।।


गया जो हाथ से वो वक़्त फिर नहीं आता
कहाँ उमीद कि फिर दिन फिरें हमारे अब


कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई


सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का,
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का।।


वो वक़्त भी बहुत खास होता है,
जब सर पर माता पिता का हाथ होता है।


वक्त पर आया करता था जवाब उनका,
ये भी एक वक्त की बात हुए करती थी।।


ज़हर देता है कोई कोई दवा देता है
जो भी मिलता है मिरा दर्द बढ़ा देता है


कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
कारवान-ए-उम्र-ए-रफ़्ता का निशाँ देखा किए

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Naresh Kumar
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इनका नाम नरेश कुमार है और यह इस ब्लॉग के Founder है । वोह एक Professional Blogger हैं जो SEO, Technology, Internet से जुड़ी विषय में रुचि रखते है । इनको 2 वर्ष से अधिक SEO का अनुभव है और 4 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे है। इनके द्वारा लिखा गया कंटेंट आपको कैसा लगा, कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। आप इनसे नीचे दिए सोशल मीडिया हैंडल पर जरूर जुड़े।

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